आज भी हैं मेरे क़दमों के निशाँ आवारा
तेरी गलियों में भटकते थे जहाँ आवारा
तुमसे क्या बिछड़े जो ये हो गयी अपनी हालत
जैसे हो जाये हवाओं से दुआ आवारा
मेरे शेरों की थी पहचान उन्ही के दम से
उसको खो के हुए थे नाम-ओ-निशां आवारा
जिसको भी चाहा उसे टूट के चाहा "रशीद"
कम मिलेंगे तुम्हें हम जैसे यहाँ आवारा
- मुमताज रशीद
Saturday, February 9, 2008
अपना गम लेके
अपना गम लेके कहीं और जाया जाये
घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाये
जिन चिरागों को हवाओं का कोई खौफ नहीं
उन चिरागों को हवाओं से बचाया जाये
बाग़ में जाने से आदाब हुआ करते हैं
किसी तितली को न फूलों से उडाया जाये
खुद्खुशी करने की हिम्मत नहीं होती सबमें
और कुछ दिन यूंही औरों को सताया जाये
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं करलें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये
- निदा फज़ली
घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाये
जिन चिरागों को हवाओं का कोई खौफ नहीं
उन चिरागों को हवाओं से बचाया जाये
बाग़ में जाने से आदाब हुआ करते हैं
किसी तितली को न फूलों से उडाया जाये
खुद्खुशी करने की हिम्मत नहीं होती सबमें
और कुछ दिन यूंही औरों को सताया जाये
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं करलें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये
- निदा फज़ली
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