Thursday, September 10, 2009

मुमकिन हो आपसे तो भुला दीजिये मुझे!

मुमकिन हो आपसे तो भुला दीजिये मुझे पत्थर पे हूँ लकीर मिटा दीजिये मुझे

हर रोज़ मुझ से ताजा शिकायत है आप को मै क्या हूँ एक बार बता दीजिये मुझे

मेरे सिवा भी है कोई मौजू- गुफ्तुगू अपना भी कोई रंग दिखा दीजिये मुझे

मैं क्या हूँ किस जगह हूँ मुझे कुछ ख़बर नही हैं आप कितनी दूर सदा दीजिये मुझे

कि मैंने अपने ज़ख्म की तशहीर जा--जा मैं मानता हूँ जुर्म सज़ा दीजिये मुझे

कायम तो हो सके कोई रिश्ता गौहर के साथ गहरे समुन्दरों में बहा दीजिये मुझे

शब् भर किरण किरण को तरसने से फायदा है तीरगी तो आग लगा दीजिये मुझे

जलते दिनों में ख़ुद पास--दीवार बैठकर साये की जुस्तुजू में लगा दीजिये मुझे

"शेहजाद" यूँ तो शोला--जाँ सर्द हो चुका लेकिन सुलग उठूँ तो हवा दीजिये मुझे

- शेहजाद अहमद

Sunday, March 1, 2009

जिहाले मस्कीं मकुन तगाफुल

जिहाल ए मस्कीं मकुन तगाफुल दुराए नैना बनाये बतियाँ
की ताब ए हिज्राँ नादारम ए जां, न लेहो काहे लगाये छतियां।

शाबान ए हिज्राँ दराज़ चुन जुल्फ वा रोज़ ए वसलत चो उम्र कोता
सखी पिया को जो मैं न देखूं तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ.

यकायक अज दिल दो चश्म ए जादू बसद फरेबम बबुर्द तस्कीं;
किसे पड़ी है जो जा सुनावे पियारे पी को हमारी बतियाँ.

चो शम्मा सोज़ाँ चो ज़र्रा हैरां हमेशा गिरयां बे इश्क आँ में;
न नींद नैना न अंग चैना न आप आवें न भेजें पतियाँ.

बहक्क ए रोज़ ए विसाल ए दिलबर की दाद मारा ग़रीब खुसरौ
सपेट मन के वाराए राखूं जो जाए पाऊँ पिया के खटियाँ।

- अमीर खुसरो

Wednesday, February 4, 2009

जुबां ऐ यार ए मन तुर्की

जुबां ऐ यार ऐ मन तुर्की, व मन तुर्की नमी दानं,
चे खुश बूदी, अगर बूदी, ज़बानश दर दहन ऐ मन।

- अमीर खुसरो