मुमकिन हो आपसे तो भुला दीजिये मुझे पत्थर पे हूँ लकीर मिटा दीजिये मुझे
हर रोज़ मुझ से ताजा शिकायत है आप को मै क्या हूँ एक बार बता दीजिये मुझे
मेरे सिवा भी है कोई मौजू-ऐ गुफ्तुगू अपना भी कोई रंग दिखा दीजिये मुझे
मैं क्या हूँ किस जगह हूँ मुझे कुछ ख़बर नही हैं आप कितनी दूर सदा दीजिये मुझे
कि मैंने अपने ज़ख्म की तशहीर जा-ब-जा मैं मानता हूँ जुर्म सज़ा दीजिये मुझे
कायम तो हो सके कोई रिश्ता गौहर के साथ गहरे समुन्दरों में बहा दीजिये मुझे
शब् भर किरण किरण को तरसने से फायदा है तीरगी तो आग लगा दीजिये मुझे
जलते दिनों में ख़ुद पास-ऐ-दीवार बैठकर साये की जुस्तुजू में लगा दीजिये मुझे
"शेहजाद" यूँ तो शोला-ऐ-जाँ सर्द हो चुका लेकिन सुलग उठूँ तो हवा दीजिये मुझे
- शेहजाद अहमद