मुस्कुराती हुई धनक है वही,
उस बदन में चमक दमक है वही
फूल कुम्हला गए उजालों के
सांवली शाम में नमक है वही
अब भी चेहरा चराग लगता है
भूल गया है मगर चमक है वही
कोई सिलसिला ज़रूर टूटा है
गुनगुनाती हुई खनक है वही
प्यार किसका मिल था मिटटी में
इस चमेली तले महक है वही
- डॉ बशीर बदर
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment