आज भी हैं मेरे क़दमों के निशाँ आवारा
तेरी गलियों में भटकते थे जहाँ आवारा
तुमसे क्या बिछड़े जो ये हो गयी अपनी हालत
जैसे हो जाये हवाओं से दुआ आवारा
मेरे शेरों की थी पहचान उन्ही के दम से
उसको खो के हुए थे नाम-ओ-निशां आवारा
जिसको भी चाहा उसे टूट के चाहा "रशीद"
कम मिलेंगे तुम्हें हम जैसे यहाँ आवारा
- मुमताज रशीद
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