Thursday, November 22, 2007

जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे

जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे
हज़ारों तरफ से निशाने लगे

हुई शाम यादों के इक गाँव में
परिंदे उदासी के आने लगे

घडी दो घडी मुझको पलकों पे रख
यहाँ आते आते जमाने लगे

कभी बस्तियां दिल की यूं भी बसीं
दुकानें खुलीं कारखाने लगे

वहीं ज़र्द पत्तों का कालीन है
गुलों के जहाँ शामियाने लगे

पढाई लिखाई का मौसम कहाँ
किताबों में ख़त आने जाने लगे

- बशीर बद्र

No comments: