Friday, November 23, 2007

जगमगाते शहर की

जगमगाते शहर की रानाइयों में क्या न था
ढूंढने निकला था जिसको मैं वही चेहरा न था

रेत पे लिख्खे हुए नामों को पढ़कर देख लो
आज तनहा रह गया हूँ कल मगर ऐसा न था

हम वही तुम भी वही मौसम वही मंज़र वही
फासला बढ़ जाएगा इतना कभी सोचा न था

फिक्र के दर पर कोई आहट कोई दस्तक नहीं
वो फ़क़त बीमार जिस का कोई हमसाया न था


छोड़ आया जिन सफीनों को तलातुम के करीब
नाखुदा उनमें तेरा शायद कोई अपना न था

- अमीर कज़ल्बाश

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