Friday, November 23, 2007

आंखों का रंग

आंखों का रंग बात का लहजा बदल गया
वो शख्स एक शाम में कितना बदल गया

कुछ दिन तो मेरा अक्स रहा आइना नक्स
फिर यूं हुआ के खुद मेरा चेहरा बदल गया

जब अपने अपने हाल पे हम तुम न रह सके
तो क्या हुआ जो हमसे जमाना बदल गया

क़दमों तले जो रेत बिछी थी वो चल पड़ी
उसने छुड़ाया हाथ तो सेहरा बदल गया

कोई भी चीज अपनी जगह पर नहीं रही
जाते ही एक शख्स के क्या क्या बदल गया

इक सर्खोसी की मौज ने कैसे किया कमाल
वो भी नियाज़ सारा का सारा बदल गया

उठ कर चला गया कोई वक्फे के दरम्यान
पर्दा उठा तो सारा तमाशा बदल गया

हैरत से सारे लफ्ज़ उसे देखते रहे
बातों में अपनी बात को कैसे बदल गया

शायद वफ़ा के खेल से उकता गया था वो
मंजिल के पास आके जो रस्ता बदल गया

कायम किसी हाल पे दुनिया नहीं रही
ताबीर खो गयी कभी सपना बदल गया

मंज़र का रंग असल में साया था रंग का
जिस ने उसे जिधर से भी देखा बदल गया

अन्दर के मौसमों की खबर उसको हो गयी
उस नौबहार नाज़ का चेहरा बदल गया

आंखों में जितने अस्क थे जुगनू से बन गए
वो मुस्कुराया और मेरी दुनिया बदल गया

अपनी गली में अपना ही घर ढूँढते हैं लोग
हंज़ला ये कौन शहर का नक्सा बदल गया

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