मत कहो आकाश में कोहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।
सुर्य हमने भी नहीं देखा सुबह का,
क्या कारोगे सुर्य का क्या देखना है।
हो गयी हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है।
दोस्तों अब मंच पर सुविधा नहीं है,
आजकल नेपथ्य में सम्भावना है.
कवि: दुष्यंत कुमार.
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