Wednesday, October 24, 2007

आज के दौर में

आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है
ज़ख्म हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर क्यूँ है

जब हकीक़त है के हर ज़र्रे में तू रहता है
फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ है

अपना अंजाम तो मालूम है सब को फिर भी
अपनी नज़रों में हर इंसान सिकंदर क्यूं है

जिंदगी जीने के काबिल ही नहीं अब "फकीर"
वर्ना हर आँख में अश्कों का समंदर क्यूं है

- सुदर्शन फकीर

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