Tuesday, October 30, 2007

परखना मत

परखना मत परखने से कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता

हज़ारों शेर मेरे सो गए कागज़ की कब्रों में
अजब माँ हूँ कोई बच्चा मेरा जिंदा नहीं रहता

बडे लोगों से मिलने में हमेशा फासला रखना
जहाँ दरिया समंदर से मिला दरिया नहीं रहता

तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नए अंदाज़ वाला है
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता

कोई बादल नए मौसम का फिर ऐलान करता है
खिजां के बाग़ में जब एक भी पत्ता नहीं रहता

मोहब्बत एक खुशबू है हमेशा साथ रहती है
कोई इंसान तन्हाई में भी तनहा नहीं रहता

- डॉ बशीर बदर

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