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Sher-O-Shayari
Friday, October 19, 2007
शकीब अपने तआरुफ़ के लिए ये बात काफी है
शकीब अपने तआरुफ़ के लिए ये बात काफी है,
हम उससे हट के चलते हैं जो राह आम होती है।
- शकीब जलाली
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वो महकती पलकों की ओट से
गुरेज़ शब से, सहर से कलाम रखते थे
बिछड़ा है एक बार तो
परखना मत
शबनम हूँ सुर्ख फूल पे
बहुत दिनों की बात है
चले भी आओ
सारे जहाँ से अच्छा
आता है याद मुझको
आज के दौर में
आज के दौर में
आदम का जिस्म जबसे
अक्स खुशबू हूँ!
रकीब से
मेरी तस्वीर में रंग और किसी का तो नहीं
वो तो खुशबु है
हस सू दिखाई देते हैं वो जलवागार मुझे
दिल में किसी के राह किये जा रहा हूँ मैं
ये तवायफ़ भी इस्मत बचा ले गयी
शकीब अपने तआरुफ़ के लिए ये बात काफी है
किसी को देके दिल कोई नवासंज-ए-फुगाँ क्यों हो
दस्त-ए-तन्हाई में ऐ जान-ए-जहाँ लर्जां है, तेरी आवा...
अब तो घबरा के ये कहते हैं!
बिखर गए सब ताने बाने!
मत कहो आकाश में कोहरा घना है!
आंख प्यासी है कोई मंज़र दे!
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