Friday, October 19, 2007

ये तवायफ़ भी इस्मत बचा ले गयी

सर से चादर बदन से काबा ले गयी,
ज़िंदगी हम फकीरों से क्या ले गयी।

मेरी मुट्ठी में सूखे हुए फूल हैं,
खुशबुओं को दिखाकर हवा ले गयी।

मैं समंदर के सीने में चट्टान था,
रात एक मौज आई बहा ले गयी।

हम जो कागज के अश्कों के भीगे हुए,
क्यों चिरागों की लौ तक हवा ले गयी।

चाँद ने रात मुझको जगाकर कहा,
एक लड़की तुम्हारा पता ले गयी।

मेरी शोहरत सियासत से मह्फूस है,
ये तवायफ़ भी इस्मत बचा ले गयी।

- डॉ बशीर बदर

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