Wednesday, October 24, 2007

सारे जहाँ से अच्छा

सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्तां हमारा
हम बुलबुले हैं इसकी ये गुलसितां हमारा

गुरबत में हों अगर हम रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा

पर्वत वो सबसे ऊँचा हमसाया आसमां का
वो संतरी हमारा वो पास्बां हमारा

गोदी में खेलती हैं जिसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिनके दम से रश्क-ए-जहाँ हमारा

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा वो दिन है याद तुझको
उतरा तेरे किनारे जब कारवां हमारा

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिंदोस्तां हमारा

कुछ बात है कि हस्ति मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जहाँ हमारा

"इकबाल" कोई महरम अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहां हमारा

- इकबाल

No comments: