Friday, October 19, 2007

वो तो खुशबु है

वो तो खुशबु है हवाओं में बिखर जाएगा
मसला फूल का है फूल किधर जायेगा

हम तो समझे थे के एक जख्म है भर जाएगा
क्या खबर थी की रग-ए-जां में उतर जाएगा

वो हवाओं की तरह खाना-बजां फिरता है
एक झोंका है जो आयेगा गुज़र जाएगा

वो जब आयेगा तो फिर उसकी रफाकत के लिए
मौसम-ए-गुल मेरे आँगन में ठहर जाएगा

अखिराश वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी
तेरा ये प्यार भी दरिया है उतार जाएगा

- परवीन शकीर

2 comments:

nimish said...

not pravin shakir
parveen shakir

Unknown said...

Thanks Nimish!