वो तो खुशबु है हवाओं में बिखर जाएगा
मसला फूल का है फूल किधर जायेगा
हम तो समझे थे के एक जख्म है भर जाएगा
क्या खबर थी की रग-ए-जां में उतर जाएगा
वो हवाओं की तरह खाना-बजां फिरता है
एक झोंका है जो आयेगा गुज़र जाएगा
वो जब आयेगा तो फिर उसकी रफाकत के लिए
मौसम-ए-गुल मेरे आँगन में ठहर जाएगा
अखिराश वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी
तेरा ये प्यार भी दरिया है उतार जाएगा
मसला फूल का है फूल किधर जायेगा
हम तो समझे थे के एक जख्म है भर जाएगा
क्या खबर थी की रग-ए-जां में उतर जाएगा
वो हवाओं की तरह खाना-बजां फिरता है
एक झोंका है जो आयेगा गुज़र जाएगा
वो जब आयेगा तो फिर उसकी रफाकत के लिए
मौसम-ए-गुल मेरे आँगन में ठहर जाएगा
अखिराश वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी
तेरा ये प्यार भी दरिया है उतार जाएगा
- परवीन शकीर
2 comments:
not pravin shakir
parveen shakir
Thanks Nimish!
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