किसी को देके दिल कोई नवासंज-ए-फुगाँ क्यों हो,
न जब हो दिल ही सीने में तो फिर मुँह में जबां क्यों हो।
[नवासंज-ए-फुगाँ = to cry out]
वो अपनी खू न छोडेंगे हम अपनी वजा क्यों बदलें,
सुबक-सार बनके क्या पूछें कि हम सर-गिरां क्यों हो।
[खू = habit; वजा = behavior; सुबक-सार = embarrassed; सर-गिरां = arrogant]
किया गम ख्वार ने रुसवा लगे आग इस मोहब्बत को,
न लाये ताब जो गम की वो मेरा राज़दां क्यों हो।
[गम-ख्वार = one who consoles; ताब = patience; राज़दान = confident]
वफ़ा कैसी कहाँ का इश्क जब सर फोड़ना ठहरा,
तो फिर ए संगदिल तेरा संग-ए-आस्तां क्यों हो।
[संग-ए-आस्तां = threshold]
क़फ़स में मुझसे रूदाद-ए-चमन कहते न डर हमदम,
गिरी है जिसपे कल बिजली वो मेरा आशियाँ क्यों हो।
[क़फ़स = cage; रूदाद = report]
ये कह सकते हो हम दिल में नहीं है पर ये बताओ,
कि जब दिल में तुम ही तुम हो तो आंखों से निहां क्यों हो।
[निहां = hidden]
गलत है जज्बा-ए-दिल का शिकवा देखो जुर्म किसका है,
न खीन्चों गर तुम अपने को कशाकश दरमियाँ क्यों हो।
[शिकवा = complaint; कशाकश = struggle; दरमियाँ = between]
ये फितना आदमी की खानावीरानी को क्या कम है,
हुए तुम दोस्त जिसके दुश्मन उसका आसमां क्यों हो।
[फितना = quarrel; खानावीरानी = ruining of one's home]
यही है आजमाना तो सताना किसको कहते हैं,
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तिहाँ क्यों हो।
[अदू = enemy]
कहा तुमने कि क्यों हो ग़ैर के मिलने में रुसवाई,
बजा कहते हो सच कहते हो फिर कहिये की हाँ क्यों हो।
[रुसवाई = disgrace; बजा = correct]
निकाला चाहता है काम क्या तानों से तू ग़ालिब,
तेरे बेमहर कहने से वो तुझ पर मेहरबान क्यों हो।
[ताना = taunt; बेमेहर = unkind]
- मिर्ज़ा ग़ालिब
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