कितना हसीं गुनाह किये जा रहा हूँ मैं
दुनिया-ए-दिल तबाह किये जा रहा हूँ मैं
सर्फ़-ए-निगाह-ओ-आह किये जा रहा हूँ मैं
फर्द-ए-अमल सिआह किये जा रहा हूँ मैं
रहमत को बेपनाह किये जा रहा हूँ मैं
ऐसे भी इक निगाह किये जा रहा हूँ मैं
ज़र्रों को मेहर-ओ-माह किये जा रहा हूँ मैं
मुझ से लगे हैं इश्क की अज़मत को चार चाँद
खुद हुश्न को गवाह किये जा रहा हूँ मैं
मासूमी-ए-जमाल को भी जिस पे रश्क हो
ऐसे भी कुछ गुनाह किये जा रहा हूँ मैं
आगे कदम बढाएं जिन्हें सूझता नहीं
रोशन चिराग-ए-राह किये जा रहा हूँ मैं
तानाकीद-ए-हुश्न मसलहत-ए-खाश-ए-इश्क है
ये जुर्म गाह गाह किये जा रहा हूँ मैं
गुलशन परस्त हुँ मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़
काँटों से भी निबाह किये जा रह हूँ मैं
यूं ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बगैर
जैसे कोई गुनाह किये जा रह हूँ मैं
मुझसे अदा हुआ है जिगर जुश्तजू का हक
हर जर्रे को गवाह किये जा रह हूँ मैं
- जिगर मोरादाबादी
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