Wednesday, October 24, 2007

आदम का जिस्म जबसे

आदम का जिस्म जबसे अनासर से मिल बना
कुछ आग बच रही थी सो आशिक का दिल बना

सरगर्म-ए-नाला आजकल मैं भी हूँ अंदलीब
मत आशियाँ चमन में मेरे मुत्तसिल बना

जब तेशा कोह्कान ने लिया हाथ तब से इश्क
बोला के अपनी छाती पे रखने को सिल बना

जिस तीरगी से रोज़ है उशाक का सियाह
शायद उसी से चेहरा-ए-खुबां पे तिल बना

लब ज़िंदगी मैं कब मिले उस लब से ऐ कलाल
सागर हमारी खाक को मत कर के गिल बना

अपना हुनर दिखा देंगे हम तुझको शीशागर
टूटा हुआ किसी का अगर हमसे दिल बना

सुन सुन के अर्ज़-ए-हाल मेरा यार ने कहा
"सौदा" न बातें बैठ के यां मुत्तसिल बना

- मोहम्मद रफी "सौदा"

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